रविवार, 29 मार्च 2009

किसी को क्या पता था..?

किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम,
किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया!

वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता,
चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया!

जो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा,
तसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आया!

लगन ऐसी खरी थी तीरगी आड़े नहीं आई,
ये सपना सुब्ह के हल्के धुँधलकों तक चला आया!
- दुष्यन्त कुमार

दिल जो आ जाए तो क्या करते हैं..?

इस अदा से वो वफ़ा करते हैं,
कोई जाने कि वफ़ा करते हैं?

हमको छोड़ोगे तो पछताओगे,
हँसने वालों से हँसा करते हैं!

ये बताता नहीं कोई मुझको,
दिल जो आ जाए तो क्या करते हैं?

हुस्न का हक़ नहीं रहता बाक़ी,
हर अदा में वो अदा करते हैं!

किस क़दर हैं तेरी आँखे बेबाक,
इन से फ़ित्ने भी हया करते हैं!

इस लिए दिल को लगा रक्खा है,
इस में दिल को लगा रक्खा है!

'दाग़' तू देख तो क्या होता है,
जब्र पर जब्र किया करते हैं!