हवा के दरमियान आज रात का पड़ाव है
मैं अपने ख़्वाब के चिराग़ को
जला न पाऊंगा ये सोच के
बहुत ही बदहवास हूँ
मैं सुबह से उदास हूँ।
बुधवार, 24 जून 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
कुछ शब्द चीखते हैं कुछ कपड़े उतार कर घुस जाते हैं इतिहास में कुछ हो जाते हैं खामोश..! शब्द दोस्त हैं मेरे अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग वक्त पर सहयोग करते हुए मेरी भाषा के शब्द मेरे साथ बढ़ते हुए..!